Translate

Tuesday, June 2, 2020

एक मुट्ठी धूप !

एक बार फिर ज़िन्दगी की जंग लड़ते लोगों के लिए :

एक टुकड़ा धूप
हथेली में अपनी भर लूँ !

खोल दूँ ले जाकर
अँधेरों की कोठरी में
जहाँ से आती है 
घुटती सिसकती आवाज़ें-
अनजान आवाज़ें 
संघर्षशील
जीवन को पाने को !

नहीं कोई राह
बाहर निकलने की।

उम्मीद पर जी रहे हैं
कोई तो लाकर दे उन्हें
एक मुट्ठी धूप।

जी सकें वो भी,
एक पूरी ज़िन्दगी।

अम्बर हरियाणवी
JKSF/0004/2018
©KILOIA

No comments: