क्यों नहीं हिचकते लोग
अपनी रोटियाँ सेकने से
किसी भी जलती चिता पर !
आ जाते हैं निकल-निकल कर
भूखें नंगों की तरह
राजनीति खेलने को...
सब की भावनाओं का मज़ाक उड़ाते
बेशर्म और बेग़ैरत बन
जिन्हें सिर्फ़ पसन्द हैं
दूसरों के आँसू
मौत पर मनाते जश्न
उजाले के चेहरे अलग हैं
रात की कालिमा से !
जो आ जाते हैं निकल कर बाहर
करते हैं इंतज़ार
कोई बलात्कार होने का
किसी को जलाए जाने का !
दलित हो तो बात ही क्या
ये तो राजनीति के पत्तों का नरपति
हर राजनेता बन जाता है हमदर्द
मगरमच्छ के आँसू
जनता की सहानुभूति
एक नया वोट बैंक
पा सके खोई इज्ज़त
पा सके खोई कुर्सी
उन्हें तो राजनीति करनी है
लाशों की राजनीति !!!
अम्बर हरियाणवी
©KILOIA
JKSF/0004/2018
02102020/20:48:00
#kiloia
#amberhariyanvi
#mukeshgoelkiloia
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