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Tuesday, October 24, 2017

मूर्तिकार।


बनाता हूँ मैं,
भगवान की मूर्तियां
सूंदर से सूंदर बने,
कोशिश यही होती है मेरी।
बड़े ध्यान से,
बड़े चाव से,
करता हूँ पूरी।
मैं, हरेक मूरत को।
मुझे ये लालच नही
खूब मुझे धन मिले,
ये करता हूँ मैं
उसे पाने की धुन में ।
शायद कभी
उसकी कृपा दृष्टि
हो मुझ पर।
शायद इसी बहाने,
तर जाऊ मैं भी
भव सागर पार।
क्योकि मैं हूँ
एक मूर्तिकार।
कोई लिखता है,
भजन कहानियां
कोई लिखता है
प्रेम दिवानिया।
मैं पत्थर पर लिखता हूँ
उसकी मेहरबानियां।

 

मुकेश गोयल 'किलोईया'