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Tuesday, December 19, 2017

उजाला


 

अंधेरो से मुझे लगाव है बहुत
सूरज के उजालो से डर लगता है
जब भी चाह उसे मैंने हम ना मिल सके ,
उनके ख्यालो से मुझे डर लगता है,

 

मै चाहता हूँ ख़ुशी के गीत लिखना,
मगर गम के नजरानो से डर लगता है ,
हाथ में हो हाथ  वो साथ हो मेरे ,
फिर भी उनके छूट जाने का डर लगता है ,

 

उजाला उनकी यादों का किसी सूरज से कम नहीं ,
पर मुझे उस सूरज के डूब जाने का डर लगता है ,
अब और नहीं मुझ में कुब्बत यारो ,
बहार मिली नहीं और खिजाओ के आने का डर लगता है ,

 

मुकेश गोयल ‘किलोईया’


Saturday, December 16, 2017

इंतजार !

 

गौरी बैठी नदी के किनारे, पिया की वो राह निहारे,


सोलह सिंगार कर के आई, बैठ पाषाण पर मंद मुस्काई।


कब आएंगे पिया मोरे, कब से बैठी बाट निहारु


आ जाओ अब तो प्रीतम, हौले हौले तुम्हे पुकारू,


काजल, बिंदी, लाली गजरा, सब से मैने सिंगार किया है,


नथनी, बाली, बिछुआ पहना, तेरे नाम का रस पिया है,


होठो पर मुस्कान सजी है, आंखों में लाली है छाई,


अब तो आ जाओ साजन, विरह में क्यो इतनी तड़पाई।

 

 

मुकेश गोयल 'किलोईया'


Friday, December 15, 2017

दहेज

दहेज

एक कलंक

आजके समाज पर।

हम पढ़े लिखे

सभ्य कहते
खुद को।
क्या है हम
सभ्य?
जला देते है
किसी और की बेटी
क्योंकि
वो हमारी बेटी नही।
लालच में
हो जाते है अंधे।
पर तब
क्यो देते
दोष दुसरो को,
जब जलाता है
वो हमारी बेटी।
ये तो रीत है
दुनिया की सदियों से
इस हाथ दे, उस हाथ ले
स्वर्ग और नर्क
सब यही है धरती पर
हम सब को लेनी होगी
शपथ!
ना देंगे ना लेंगे दहेज
शादी करेंगे साधारण
बिना लिए दहेज।
कुचलेंगे इस रावण को
ताकि ना जले कोई
हमारी बेटी
ना चढ़े
इस रावण की भेंट।

 

मुकेश गोयल 'किलोईया'

 

Copyright KILOIA

Tuesday, October 24, 2017

मूर्तिकार।


बनाता हूँ मैं,
भगवान की मूर्तियां
सूंदर से सूंदर बने,
कोशिश यही होती है मेरी।
बड़े ध्यान से,
बड़े चाव से,
करता हूँ पूरी।
मैं, हरेक मूरत को।
मुझे ये लालच नही
खूब मुझे धन मिले,
ये करता हूँ मैं
उसे पाने की धुन में ।
शायद कभी
उसकी कृपा दृष्टि
हो मुझ पर।
शायद इसी बहाने,
तर जाऊ मैं भी
भव सागर पार।
क्योकि मैं हूँ
एक मूर्तिकार।
कोई लिखता है,
भजन कहानियां
कोई लिखता है
प्रेम दिवानिया।
मैं पत्थर पर लिखता हूँ
उसकी मेहरबानियां।

 

मुकेश गोयल 'किलोईया'